Dahej Pratha Par Nibandh: दहेज प्रथा पर निबंध

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Dahej Pratha Par Nibandh

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Dahej Pratha Par Nibandh
Dahej Pratha Par Nibandh

दहेज प्रथा पर निबंध 150 शब्दों में / दहेज प्रथा पर निबंध 200 शब्दों में

दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए गए नगद पैसे, आभूषण, फर्निचर, कोई वाहन, संपत्ति और अन्य मूल्यवान वस्तुओं को देना दहेज कहलाता है. वही पुराने समय से ही दूल्हे के परिवार को दहेज को देने की प्रथा को ही दहेज प्रथा कहा जाता है. 

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दहेज प्रथा दुनिया भर में किसी न किसी रूप में फैली हुई है. दहेज प्रथा शादी के बाद लड़कियों को आर्थिक रुप से मदद करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई थी ताकि लड़की एक नए सिरे से अपने जीवन जीने की शुरुआत कर सके. लेकिन समाज में यह प्रथा धीरे-धीरे कुप्रथा में शामिल हो गई.

बहुत ही दुख की बात है कि देश में सभी लोग दहेज प्रथा के दुष्प्रभाव से पूरी तरह परिचित थे लेकिन फिर भी यह कुप्रथा हमारे देश में अभी भी प्रचलित है. इस प्रथा को जड़ से उखाड़ने के लिए स्वयं लड़के लड़की के माता-पिता को इस बात को समझना चाहिए. इसके साथ ही, दूल्हा-दुल्हन को भी इस बारे में इंकार करना चाहिए.

दहेज प्रथा पर निबंध 300 शब्द in Hindi/ दहेज प्रथा पर निबंध 400-500 शब्दों में

प्रस्तावना (दहेज प्रथा क्या है in Hindi?)

यू कहने को तो हमारा देश विकासशील देश है लेकिन इस विकासशील देश में कई समाज और लोग ऐसे भी हैं जहां कुप्रथा बड़ी धूम-धाम से चल रही है. ऐसी कुप्रथाए हमारे देश को अप्रत्यक्ष रूप से पीछे की तरफ धकेल रही हैं. जिसमें दहेज प्रथा बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय और मुख्य रुप से शामिल कुप्रथाओ में से एक हैं. लेकिन यह आज हमारे लिए एक चुनौती जैसी बन गई है.

दहेज के कारण ( दहेज क्या है दहेज के कारणों की व्याख्या?)

प्राचीन समय में राजा महाराजा और पैसे वाले लोग अपनी बेटियों की शादी मे बड़ी मात्रा में सोने-चांदी के आभूषण, हीरे-जवाहरात और कई सारी संपत्ति शादी के दौरान दे दिया करते थे. लेकिन धीरे-धीरे यहां प्रथा पूरी दुनिया में फैल गई. इसका एक और कारण यहां भी है कि हमारे भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कमतर आंका जाता है. लेकिन सही माय नो में एक स्त्री पुरुष से किसी भी इस पर पर कम नहीं है. लेकिन प्राचीन समय से चली आ रही प्रथा के कारण समाज दहेज ऐसी कुप्रथा के पीछे नहीं हट पा रहा है. 

समाज में उच्च वर्ग के लोग अपनी बेटियों की शादी में कई सारा पैसा और कीमती समान दूल्हे के घर वालों को दे देते हैं लेकिन मध्यम और निम्न वर्ग के परिवार अपनी बेटियों की शादी में दहेज देने में असमर्थ रहता है.

दहेज प्रथा को रोकना ( दहेज प्रथा को कैसे दूर किया जा सकता है?)

दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने के लिए समाज और सरकार को दोनों को एक साथ मिलकर इसको रोकने का प्रयास करना चाहिए. सरकार इस प्रथा को रोकने के लिए कड़े से कड़ा कानून और दहेज लेने और देने वाले के लिए कठोर प्रावधान कर सकती है. 

वही इसे रोकने के लिए सबसे ज्यादा अगर किसी का प्रभाव पड़ता है तो वहां है दूल्हा और दुल्हन. यदि यह दोनों ही दहेज लेने से मना कर दे तो मामला ही खत्म हो जाएगा. क्योंकि कानून की भी कुछ सीमाएं होती है जिस कारण समाज में बसी हुई प्रथाए जड से नहीं उखड़ पाती. लेकिन अगर लड़की इतना अधिक पढ़ लिख ले कि लड़के वाले के परिवार वालों को दहेज मांगने में शर्म आ जाए. इसके साथ ही लड़कियों को शिक्षित बनाकर जागरुक किया जाना चाहिए. जिससे कि वह समाज द्वारा लगाए गए लांछन का जवाब कठोरता से दे सके. 

उपसंहार

जब तक समाज के लोग यह नहीं समझेंगे कि दुल्हन ही दहेज है तब तक इस प्रथा को जड़ से खत्म कर पाना मुश्किल होगा. अगर शादी करने वाला युवा वर्ग ही दहेज लेने से इंकार कर दे और बिना दहेज के ही विवाह करें तो यह आदर्श उदाहरण और दूसरे लोगों को भी प्रेरित करेगा. 

इस प्रथा का निर्माण यदि समाज के लोगों से हुआ है तो इसका अंत भी समाज के लोगों से ही होगा. सरकार को जितना प्रयास करना था सरकार अपने स्तर पर कर चुकी है अब शादी के दोनों पक्षों को दहेज लेने की प्रथा से इंकार करना होगा या फिर लड़की को इतना सशक्त बनना पड़ेगा की लड़की पढ़-लिख कर नौकरी लग कर हाउसहस्बैंड का कॉन्सेप्ट शुरु कर दे. 

दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में (Dahej Pratha Full Essay in Hindi)

प्रस्तावना

मानव ने मिलकर समाज का निर्माण किया। समाज ही मानव जीवन को एक सही और आदर्श जीवन जीने की सीख भी देता है। मानव से समाज है और समाज से मानव क्योंकि मानव नहीं होगा तो समाज का निर्माण ही नही होगा और अगर समाज नहीं होगा तो इंसान के जीवन में ऊसूल, आदर्श जैसी चीजें या तो रहेंगी ही नहीं या नाम मात्र रह जायेंगी। लेकिन इसी आदर्श समाज में कई ऐसी कुरूतियां का भी जन्म हुआ जो इंसान के लिए बहुत दुखदाई बन गई है। इन्हीं कुरूतियों में से एक है दहेज़ प्रथा जो की शुरुआत में एक रस्म मात्र थी और खुशी से दी जाती थीं। लेकिन धीरे – धीरे इसने ऐसा रूप लिया की लोग बेटियों के नाम से डरने लगे। बेटियों को पालने, उनकी परवरिश करने उनकी शादी करने से डरने लगे। इंसानों के द्वारा बनाई गई प्रथा ने ऐसा विकराल रूप धारण कर लिया जो कई गरीब घर की बेटियों और उनके माता-पिता तक को नील लिया।

दहेज प्रथा क्या है

शादी के समय बेटियों को अपने माता-पिता द्वारा दी जाने वाली भेंट दहेज कहलाता है। यह सब मां-बाप अपनी बेटियों को इसलिए देते थे ताकि उनका आगे का वैवाहिक जीवन सुखमय बीते और धीरे-धीरे यह प्रथा बन गई। अमीर हो या गरीब हर माता-पिता अपनी बेटी को अपने सामर्थ्य और इच्छानुसार भेंट देने लगे। लेकिन बाद में ये दहेज़ मां-बाप की इच्छाओं से कहीं आगे निकल गया और ससुराल वालों की इच्छाओं पर निर्भर होने लगा। शादियों के पहले ही बेटी के मां-बाप को दहेज़ में लेने वाली चीजों की लिस्ट थमाई जाने लगी और यह लिस्ट शादी के बाद और भी लंबी होती गई। दहेज़ भेंट, से प्रथा, प्रथा से कुप्रथा और फिर अभिशाप बन गई लोग अपने सामर्थ्य के बाहर जाकर अपनी बेटियों को दहेज़ देने लगे और कर्ज़ तक में डूब गए। पहले बेटियों की डोली उठाई गई और फिर उन्हीं की अर्थी क्योंकि दहेज एक ऐसी नागिन बन गई जो हर गरीब और मजबूर मां-बाप की बेटियों को डंसती गई। 

दहेज प्रथा के कारण

दहेज प्रथा के होने के कई कारण हैं, जैसे अज्ञानता का होना, इंसान का लालच और रीति-रिवाज आदि। पहले के समय में लोग अपनी बेटी के शादी के समय उसे घर गृहस्थी की सभी वस्तुऐं और कुछ धनराशि भेंट में देते थे। ताकि शादी के बाद उनकी बेटी और दामाद का जीवन अच्छे से गुज़र सके। क्योंकि ये दहेज़ माता-पिता अपनी स्वेच्छा से अपनी बेटी को देते थे तो इसमें कोई बुराई नहीं थी और यह एक प्रथा बन गई। लेकिन धीरे-धीरे इस प्रथा ने ऐसा कुरूप स्वरूप लिया की दहेज के लिए बेटियां अपने ही माता-पिता द्वारा भेंट दिए चूल्हे से जलाई जाने लगीं। कहीं उनकी ससुराल पक्ष द्वारा निर्ममता से हत्या कर दी गई तो कहीं इतना प्रताड़ित किया गया की उन्हें खुदखुशी करनी पड़ी। बेटियों के माता-पिता पर दहेज़ देने के लिए दबाव बनाया जाने लगा और यह लगभग अनिवार्य ही कर दिया गया की दहेज़ नहीं तो शादी नहीं। कई पक्ष तो दहेज मिलने के बाद भी और पैसों और दहेज के लालच में सामने वाले पक्ष को परेशान करते हैं। 

दहेज प्रथा का परिणाम

दहेज प्रथा के क्या परिणाम है वो तो हम आए दिन अखबार और न्यूज चैनल के माध्यम से देख ही रहे हैं। बेटियों की शादी हर मां-बाप का सपना होती है लेकिन इस सपने के साथ साथ दहेज नाम की एक काली अंधेरी रात उनके जीवन पर हमेशा छा जाती है। क्योंकि दहेज़ केवल एक बार का नहीं होता यह तो बार-बार दिया जाता है। ससुराल पक्ष दहेज का इतना आदि हो जाता है की वो अपनी बहु को जिंदा जलाने, उनकी हत्या करने और कही कहीं तलक देने जैसी स्थिति पर उतर आते हैं। स्थिति यह तक बन गई थी की लोग बेटियों को पालने से डरने लगे थे। वे ससुराल की जगह अपने मां की कोख में ही मारी जाने लगीं और यहां एक और अपराध ने जन्म लिया भ्रूण हत्या। इसके बाद भी अगर गलती से बेटी जन्मी भी जाती तो उन्हें जन्म के बाद मार दिया जाता था, बेटियां लोगों को बोझ लगने लगी थी। लेकिन ये सब आखिर क्यूं, केवल और केवल दहेज के लिए लेकिन क्या इसके लिए केवल दहेज लेने वाले ही जिम्मेदार है। नहीं इसके लिए दहेज देने वाले भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वो खुद ही आगे से ससुराल पक्ष को लालच लेकर दहेज़ जैसी प्रथा को न्यौता देते हैं की सामने वाला पक्ष या और लोग भविष्य में दहेज़ जैसी चीजों का समर्थन करें।

दहेज प्रथा को कैसे दूर करें

दहेज़ प्रथा के फैलने के लिए दहेज लेने और देने वाले दोनों ही पक्ष जिम्मेदार और अपराधी हैं। क्योंकि दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन जुर्म हैं जितना दहेज़ लेने वाला अपराधी है उतना ही देने वाले भी। दहेज़ एक ऐसी आग है जो कभी नहीं बुझती और दहेज देने वाले इस आग में घी डालने का काम करते हैं। अगर पहली बार में ही दहेज न दिया जाए तो इसे बार बार मांगने के लिए बेटियों को प्रताड़ित नहीं किया जाएगा न ही अगली बार में इसकी मांग की जायेगी। प्रशासन ने दहेज़ प्रथा के खिलाफ कई निर्णय लिए और कानून बनाया गया की दहेज़ लेने और देने वाले दोनों ही अपराधी है। अगर कोई भी दहेज़ लेते या देते पकड़ा गया तो कानून की किताब में दोनों ही के लिए कड़े दंड है। इसलिए दहेज़ लेने और देने जैसी कुप्रथा के भागी न बनकर हमें अपने समाज में जागरूकता फैलाना चाहिए। अपनी बेटियां को इतना स्वाबलंबी और शिक्षित और स्वाबलंबी बनाना चाहिए की उन्हें किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़ा। वे खुद ही इतनी सक्षम हो की अपना जीवन यापन अच्छे से कर सकें और किसी पर आर्थिक रूप से निर्भर न रहें।

उपसंहार

दहेज़ किसी एक जाति, धर्म या प्रदेश की समस्या नहीं है ये तो पूरे देश की समस्या है। अगर इस समस्या के जन्म दाता हम हैं तो कहीं न कहीं इसका अंत भी हमें अच्छे से करना आता है। देश में इस कुप्रथा को हटाने से पहले इसे हमने अपने घर से शुरू करना चाहिए। शादियों में न तो दहेज देना चाहिए न ही लेना चाहिए, यह खुशी से दी जाने वाली भेंट है जो बेटियों को दी जाती है। अगर कोई माता पिता सक्षम हैं और उपहार स्वरूप अपनी बेटी को भेंट देना चाहते हैं तो यह जायज़ है। लेकिन किसी पर दहेज का दवाब बनाना या उन्हें प्रताड़ित करना कानूनी अपराध है। हमें स्वयं को और अपनी आने वाली पीढ़ी को इतना जागरूक करना होगा की वे दहेज़ प्रथा जैसी कुरुतियों का खण्डन कर सके और इसे मिटा सकें।

Dahej Pratha Par Nibandh Hindi Mein

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