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Essay on Muharram in Hindi
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Essay on Muharram in Hindi 100 Words
हर मजहम के अपने अलग प्रथाएं होती हैं। भारत में मौजूद अलग-अलग मजहब के समुदाय के लोगों द्वारा अलग-अलग रस्मों रिवाज के साथ तेहवार मनाए जाते हैं। सभी समुदायों में कुछ तेहवार खुशी के होते हैं, तो कुछ तेहवार गम के होते हैं। मोहर्रम का तेहवार इस्लाम मजहब को मानने वाले लोगों द्वारा मनाया जाता है। मोहर्रम को इस्लामी नए वर्ष के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। आमतौर पर मोहर्रम नए साल के दसवें दिन मनाया जाता है। यह मुसलमानों के लिए शोक का तेहवार होता है। सभी मुस्लिम लोग हुसैन के शहिद होने का गम मनाते हैं।
Muharram Essay in Hindi 200 Words
मोहर्रम का तेहवार मुसलमानों का प्रमुख तेहवार है। तेहवार वैसे तो खुशी की होते हैं, लेकिन यह तेहवार मुसलमानों के लिए गम का तेहवार। मोहर्रम का यह त्योहार मुस्लिम मजहब के लोगों द्वारा अपने शहीद अनुयायियों की याद में मनाया जाता है। मोहर्रम का यह तेहवार विश्व के सभी मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है। मोहर्रम का तेहवार इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल के पहले महीने में मनाया जाता है। यह तेहवार इस्लामिक कैलेंडर के नए वर्ष के नए महीने में 10 दिन तक मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार 680 इसी में कर्बला नामक स्थान पर एक मजहब युद्ध था।
कर्बला का युद्ध बड़ा ही शर्मनाक माना जाता है। कर्बला की इसी लड़ाई में इस्लाम मजहब के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए थे। उनकी शहादत को याद करते हुए इस तेहवार को मनाया जाता है। मोहर्रम के दिन मुसलमानों द्वारा रंग-बिरंगे ताजिए निकाले जाते हैं, इन्हें ले जाकर कर्बला में दफन किया जाता है। मोहर्रम के अवसर पर मुसलमानों द्वारा जुलूस निकाले जाते हैं। ढोल बजाकर चौराहों पर रुक-रुक कर युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया जाता है।मुसलमानों द्वारा या हुसैन या हुसैन के नारे लगाए जाते हैं। मोहर्रम के तेहवार को अन्याय के प्रति विरोध का त्योहार माना जाता है। यह तेहवार संदेश देता है, ,कि मनुष्य को अपने जीवन में अपने मजहब और आदर्श तो महत्व देना चाहिए।
Muharram Par Nibandh in Hindi 300 Words
प्रस्तावना
मोहर्रम का तेहवार मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बेहद महत्व रखता है। मोहर्रम का यह तेहवार देश के हर मुसलमान द्वारा मनाया जाता है। वैसे तो तेहवार अपने साथ खुशियां लेकर आते हैं ,लेकिन यह तेहवार गम का तेहवार होता है। इस्लाम मजहब के लोगों द्वारा इस तेहवार को गम के साथ मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान लोग अपने अनुयायीयों के शहीद होने का गम मनाते हैं। शिया मुसलमानों के लिए यह तेहवार गम का तेहवार है, लेकिन वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के लोग इस दिन को ऐतिहासिक विजय दिवस के रूप में मनाते हैं।
मुहर्रम कैसे मनाया जाता है?
मोहर्रम का दिन शिया मुसलमानों के लिए बेहद एहम होता है। वे अपने खलीफा की हत्या के गम में इस दिन रंग-बिरंगे ताजिए निकालते हैं। मुसलमानों द्वारा रंग-बिरंगे ताजे निकालकर ढोल ताशों के साथ मोहर्रम के जुलूस की शुरुआत की जाती है। जुलूस के दौरान कई बार चौराहे पर रुक रुक कर मुसलमान युवक अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं, तथा अपने खलीफा की मौत का गम बनाने के लिए अपने शरीर पर वार भी करते है ,तकलीफ होने पर या हुसैन या हुसैन चिल्लाते हैं। इस दिन कुछ मुसलमान लोग रोजा भी रखते हैं। दिन-रात निशान लेकर जुलूस भी निकालते हैं।
निष्कर्ष
मुस्लिम मजहब के लोगों के लिए भले यह तेहवार गम का तेहवार, है लेकिन उनका यह तेहवार उन्हें काफी अच्छी सीख देता है। मोहर्रम का यह पाक रहकर इंसान को उसके आदर्श की याद दिलाता है। यह तेहवार इंसानों को सिखाता है, कि इंसान को अपने जीवन से बढ़कर अपने आदर्श को महत्व देना चाहिए। व्यक्ति को कभी भी अपने आदर्शों से नहीं हटना चाहिए, चाहे उस पर मुसीबतों का पहाड़ ही तोड़ना टूट पड़े। हर व्यक्ति को हमेशा मजहब और सत्य की राह पर चलना चाहिए। मोहर्रम का तेहवार अन्याय के प्रति विरोध का प्रतीक है यही कारण है कि मोहर्रम इस्लाम के इतिहास का एक कभी न भूलने वाला दिन है।
Muharram Essay in Hindi 500 Words
प्रस्तावना
दुनिया में मौजूद सभी मजहब के लोगों द्वारा अपने-अपने त्योहार मनाए जाते हैं। जिस तरह हिंदुओं में राम नवमी, नवरात्रि ,दशहरा, दिवाली जैसे पाक त्योहार मनाए जाते हैं, उसी तरह इस्लाम मजहब के लोगों द्वारा मोहर्रम का तेहवार मनाया जाता है। मुसलमानों के लिए मोहर्रम का तेहवार दुख का तेहवार होता है। मुस्लिम मजहब के लोगों द्वारा ईद का तेहवार खुशी के प्रतीक के रूप में और मोहर्रम का तेहवार गम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस्लाम मजहब के लोग अपने शहीदों की शहादत को याद रखने के लिए मोहर्रम के तेहवार को बड़ी अकीदत के साथ मनाते हैं।
2023 में मुहर्रम तेहवार कब है?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 20 जुलाई के दिन मोहर्रम का महीना शुरू हो रहा है। मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख को ताजिया है तथा इन 10 दिनों को असुरा के नाम से जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार यह साल का पहला महीना है, लेकिन अलग-अलग जगहों पर मोहर्रम की तिथि और समय अलग अलग हो सकता है। इस्लाम मजहब में 4 महीने सबसे पाक माने जाते हैं उनमें से एक महीना मोहर्रम का भी है। मोहर्रम की 1 तारीख से नए इस्लाम इस वर्ष हिजरी की शुरुआत होती है इस दिन कई इस्लामिक स्थानों पर अवकाश भी होता है।
मुहर्रम तेहवार का इतिहास
इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार इराक की राजधानी बगदाद में यजीद नाम का एक राजा था, जो कि बेहद जालिम था। यजीद को अल्लाह के ऊपर बिल्कुल विश्वास नहीं था इसके अलावा यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उनका साथ दें। उसने धोखे से हजरत इमाम हुसैन को अपने पास बुलाया और उनके अल्लाह को ना मानने की बात कही। लेकिन हजरत इमाम मोहम्मद ने उसके सभी बातों को मानने से इंकार कर दिया और दोनों के बीच जंग छिड़ गई। जंग के दौरान हजरत मोहम्मद अपने 72 साथियों के साथ थे। उनके पास ना तो हथियार थे और ना ही खाने पीने के लिए राशन। हजरत मोहम्मद ने कर्बला के मैदान में अपने 72 साथियों के साथ अन्याय के खिलाफ विरुद्ध किया। इस युद्ध में यजीद की जीत हुई उसने हजरत मोहम्मद उनके बेटे और घरवालों के साथ 72 साथियों को मार डाला।
मुहर्रम की शुरुआत कैसे हुई?
भारत में मोहर्रम पर्व मनाने की शुरुआत तैमूर लंग द्वारा की गई थी जो कि मुसलमानों के शिया समुदाय से ताल्लुक रखता है। तैमूर लंग तुर्की का निवासी था। वह दाहिने हाथ एवं बाए पांव से अपाहिज था। तैमूर हर साल मोहर्रम के महीने में इराक जाता था, लेकिन जब वह भारत आया तो हृदय रोग से ग्रसित हो गया। हकीमो ने उसे सफर ना करने की नसीहत दी। तैमूर को खुश करने के लिए उसके दरबारियों ने इमाम हुसैन की कब्र को याद में रखते हुए कलाकारों से बांस की किमाचिया से ढांचा तैयार कराया और उसे ताजिए का नाम दिया। इसके बाद अन्य रियासतों के राजाओं ने भी इस प्रथा को सख्ती से लागू कर दिया। जब तैमूर भारत आया था तो यहां के मुसलमानों द्वारा मोहर्रम का तेहवार नहीं मनाया जाता था, धीरे-धीरे भारत में और सभी महाद्वीपों में मौजूद मुसलमानों द्वारा मोहर्रम का तेहवार मनाया जाने लगा।
निष्कर्ष
हजरत इमाम हुसैन ने अपने मजहब और आदर्श को बचाए रखने के लिए अपनी जान दे दी। उनकी हत्या को मुस्लिम मजहब के लोगों द्वारा बलिदान माना गया है। मौत सामने होने के बावजूद भी हजरत इमाम हुसैन ने अन्याय को स्वीकार नहीं किया और अन्याय के खिलाफ युद्ध करना पसंद किया। इस्लाम मजहब के लोग अपने खलीफा की इस शहादत को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं वे उनकी शहादत के गम मोहर्रम का जुलूस निकालते हैं। इस जुलूस में इस्लाम मजहब के सभी लोग या हुसैन या हुसैन चिल्लाकर हुसैन से माफी मांगते है। मोहर्रम का दिन मुसलमानों के लिए गम का दिन है फिर भी वह बड़ी धूमधाम से ताजिया निकालकर अपने खलीफा को उनकी शहादत के लिए याद करते हैं।
Muharram Par Essay
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