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Indramani Badoni Essay in English
Indramani Badoni Par Nibandh
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Essay on Indramani Badoni
प्रस्तावना
भारत का एक राज्य उत्तराखंड जिसे देवभूमि की उपाधि मिली है। इसी देव भूमि की गोद में जन्मे थे हमारे इंद्रमणि बडोनी जी. बडोनी जी बचपन से ही बुद्धिमान और प्रकृति प्रेमी थे उन्हें पहाड़, पर्वत, पेड़ों, नदियों, झरनों, पशु-पक्षियों से बड़ा लगाव था. बडोनी जी सदा ही बड़े दयालु और कर्तव्य शील रहे उत्तराखंड में होने वाले आंदोलन के नायक सदा बडोनी जी ही रहे।
उत्तराखंड को स्वतंत्र और एक कुशल राज्य बनाने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ निछावर कर दिया अपने गांधीवादी विचारों की वजह से इन्हें उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है और आज भी इन्हें इसी नाम से संबोधित किया जाता है।
इंद्रमणि बडोनी का जन्म
पंडित इंद्रमणि जी का जन्म 24 दिसंबर 1925 को देवभूमि उत्तराखंड के टेहरी जिले के अखोड़ी गांव में हुआ। इंद्रमणि जी एक मध्यम वर्गीय घराने से ताल्लुक रखते थे इनके पिता का नाम सुरेशानंद बडोनी है। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने शहर के उच्च प्राथमिक रोड़धार खास पट्टी टिहरी स्कूल से पास की थी।
बडोनी जी बचपन से हीं बड़े स्वतंत्रता प्रेमी थे. वे अन्याय क़े खिलाफ आवाज़ उठाने से कभी पीछे नहीं हटे। इनका विवाह 19 वर्ष की उम्र में ही सुरजी देवी से हो गया था। बडोनी जी रंग मंच क़े बड़े शौकीन थे उन्होंने रंगमंच को आधार बनाकर सबको एक साथ लाने की कोशिश की. इन्हें उत्तराखंड में कई नाटक मंडली बनाई. रंगमंच करते-करते कुछ ही समय में बडोनी जी बहुत अच्छे कलाकार के रूप में उभरे. वे आने वाले नए कलाकारों को नित्य संगीत हाव-भाव व शारीरिक मुद्राएं सिखाते थे.
माधो सिंह का नाटक सबसे पहले इन्होने हीं किया था यह नाटक इतना प्रसिद्ध हुआ कि इस नाटक को दिल्ली व मुंबई में भी किया गया. वे अपने जीवन यापन के लिए उत्तराखंड छोड़कर मुंबई भी गए थे परंतु वहां उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और वह असफल रहे जिससे वह वापस अपने राज्य उत्तराखंड आ गए और अपने गांव व आँखोली के विकास के लिए कार्य करना प्रारंभ किया।
उत्तराखंड का गांधी (Gandhi of Uttarakhand)
उत्तराखंड के गांधी बडोनी जी ने उत्तराखंड को स्वतंत्र कराने व विकास के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया। उत्तराखंड को विकसित करने के लिए बडोनी जी ने कई योजनाए बनाई, उत्तराखंड को पर्यटन क्षेत्र बनाया जिससे देश-विदेश से आने वाले लोग देवभूमि आये और उसके विकास का कारण बने। बडोनी जी बचपन से ही शिक्षा प्रेमी थे उन्होंने उत्तराखंड क्षेत्र में कई स्कूल व इंटरमीडिएट कॉलेज खोलें, वे शुरू से ही पुस्तक रखने व पढ़ने के शौकीन थे।
बडोनी जी एक बहुत बड़े समाजसेवी थे उन्होंने समाज को हमेशा ही सिखाना चाहा कि अपनी संस्कृति को कभी ना भूलें. सादा भोजन और सादा वस्त्र हमेशा ग्रहण करें जो कि आपको हर परिस्थिति में मिल सके. उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने और बढ़ाने के लिए उन्होंने हमेशा उत्तराखंड में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम व नाटक करवाएं जिससे लोग अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक हो सके. बडोली जी कुशल वक्ता थे.
वह लोगो को अपनी बात बड़ी आसानी से समझा देते थे उन्हें सुनने से लोगो मे जोश और साहस भर जाता था. उत्तराखंड मे आंदोलन क़े लिए लोगो क़े घ्रर घर जाकर उन्हें सूचित किया।
उत्तराखंड मे पहाड़ होने क़े कारण उन्हें कई आंदोलन क़े लिए पद यात्रा भी करना पड़ी. उत्तराखंड में आंदोलन के लिए उन्होंने कई दल बनाये. उत्तराखंड आंदोलन के बाद भी उत्तराखंड के लिए नायक बन गए। जैसे गाँधी जी को राष्ट्रपिता कहा जाता है उसी तरह यह भी उत्तराखंड क़े लिए थे इसलिए उन्हें उत्तराखंड का गाँधी कहा जाता है।
राजनीतिक जीवन
इंद्रमणी जी के राजनीतिक जीवन की अगर बात करें तो मीरा बेन की इसमें बहुत प्राथमिकता रही है। मीरा बेन गांधीजी की शिष्या थी मीरा बहन से मिलने के बाद उनके जीवन में एक नई लहर आई वे सत्य और अहिंसा के पुजारी हो गए. सत्य की कीमत को समझने लगे. बडोनी जी स्वतंत्र भारत के प्रथम सरपंच बने. वे अपने गाँव आँखोड़ी क़े सरपंच बने इसके बाद वे 1967 मे प्रयाग विधान सभा सीट से विधायक क़े लिए खड़े हुये और विधायक बने वे तीन बार लगतार विधायक चुने गए।
1989 मे हुये विधान सभा चुनाव मे वे 10 हजार वोटो से हारे जबकि इनके सामने खड़े उम्मीदवार ने लाखो रूपये खर्चो किये फिर भी वो सिर्फ 10 वोट से जीता. उन्होंने उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने क़े लिए लोगो को जागरूक किया, 1979 में उन्होंने उत्तराखंड क़े मसूरी मे उत्तराखंड क्रांति दल बनाया वा जीवन भर इस दल क़े सदस्य रहे जीवन भर इस दल के लिए कार्य करते रहें.
1988 मे उत्तराखंड क्रांति दल ने 105 दिनों की पदयात्रा की यह यात्रा तवाघाट से देहरादून तक की गई थी इस पद यात्रा के बाद वह लोगो में बहोत प्रिय हो गए थे उनके समर्थन में लोग अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार थे। उन्होंने नेता बनने के बाद बागेश्वर में स्थित गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित कर दिया, पहाड़ों में रहने वाले लोगों ने अपने लिए अलग से एक राजधानी बनाई। उत्तर प्रदेश सरकार ने 1994 में उत्तराखंड में 27% आरक्षण की मांग की इस घोषणा के विरोध के लिए बडोनी जी आमरण आंदोलन के लिए बैठे 30 दिन के इस अनशन ने लोगों के मन में जोश का आक्रोश भर दिया। फलस्वरुप उत्तराखंड एक अलग राज्य बना।
उपसंहार
इंद्रमणि बडोनी वह नाम है जिसने उत्तराखंड को विकसित व अलग राज्य बनाने के लिए कठोर संघर्ष किया। आजादी के बाद उत्तराखंड प्रथम ऐसा राज्य बना जिसने अलग राज्य के साथ-साथ अपनी अलग राजधानी बनाई। इंद्रमणि जी का जीवन बड़ा ही रोचक रहा वे शिक्षा, कला और सभी क्षेत्रों में निपुण थे, एक अच्छे नेता के साथ-साथ वे एक अच्छे कलाकार भी थे.
जनसेवा और जनकल्याण के लिए वह हमेशा तत्पर रहें, उत्तराखंड जैसी देवभूमि में भी ऐसे महान पुरुष का जन्म हो सकता है. उत्तराखंड की भूमि बडोनी जी को हमेशा याद रखेगी। भारत में महात्मा गांधी पूजनीय है उसी तरह उत्तराखंड वासियों के लिए इंद्रमणि बडोनी जी पूजनीय है।
indramani badoni in Hindi
Q1. उत्तराखंड का गांधी किसे कहा जाता है?
Ans. उत्तराखंड का गांधी इंद्रमणि बडोनी को कहा जाता है.
Q2. उत्तराखंड के गांधी कौन थे?
Ans. उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बडोनी थे.
Q3. इंद्रमणि बडोनी जी की माता का नाम क्या था?
Ans. इंद्रमणि बडोनी जी की माता का नाम श्रीमती कालू देवी था.
Q4. इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म कब हुआ था?
Ans. इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म 24 दिसंबर 1924 में हुआ था.
Q5. इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म कब हुआ था?
Ans. इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले के अखोढ़ी गांव घनसाली में हुआ था.
Q6. पहाड़ का गांधी किसे कहा जाता है?
Ans. पहाड़ का गांधी इंद्रमणि बडोनी जी को ही कहा जाता है क्योंकि बडोनी जी पर्वतीय गांधी के नाम से भी लोकप्रिय है.
Q7. संकल्प दिवस (sankalp diwas) किसकी याद में मनाया जाता है?
Ans. संकल्प दिवस इंद्रमणि बडोनी की जयंती पर मनाया जाता है और उनकी याद में ही मनाया जाता है.
Q8. कुमाऊ का गांधी किसे कहा जाता है?
Ans. कुमाऊ का गांधी के नाम से देवकीनंदन पांडे को जाना जाता है.
Indramani Badoni ka Jivan Parichay
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बहुत ही सुंदर । यहां इतना अवश्य जोड़े कि बडोनी जी बेशक गृहस्थ में रहे किंतु एक संत और ऋषि की तरह इसीलिए आपके बच्चे नही हुए । ( बडोनी जी के कोई बच्चे नही है )
ji, Thank you so much