Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi: रानी लक्ष्मी बाई पर भाषण

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Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi

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Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi (1 Minute Speech on Rani Lakshmi Bai)

सभागार में मौजूद सभी सम्मानित अथितियों को मेरा नमस्कार, आदरणीय अध्यापक, अध्यापिका और मेरे प्यारे मित्रों को सुबह की नमस्ते। भारत एक ऐसा राज्य है, जहां पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया है। भारत में ऐसी कई वीरांगनाई हुई हैं, जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। ऐसी ही एक वीरांगना की बात आज मैं करने वाला हूं। रानी लक्ष्मी बाई जी के बारे में हम सब जानते हैं ,कि उन्होंने किस तरह अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का युद्ध लड़ा था। 1857 में स्वतंत्रता की लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपना अहम योगदान दिया था। अंग्रेजों द्वारा रानी लक्ष्मीबाई के राज्य झांसी को हड़पने की कोशिश की जा रही थी। इसी का विरोध करते हुए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के साथ युद्ध लड़ा। 

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Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi (2 Minute Speech on Rani Lakshmi Bai)

सभागार में मौजूद सभी सम्मानित अथितियों को मेरा नमस्कार, आदरणीय अध्यापक, अध्यापिका और मेरे प्यारे मित्रों को सुबह की नमस्ते। रानी लक्ष्मीबाई को कई लोग अपना आदर्श मानते हैं। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में अपना अहम योगदान दिया है। रानी लक्ष्मीबाई वह स्वतंत्रता सेनानी थी। जिन्होंने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार ना करते हुए अंग्रेजों के साथ युद्ध किया। इन्होंने काफी छोटी उम्र में अंग्रेजों के साथ युद्ध कर मातृभूमि के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 1835 में वाराणसी में हुआ था। इनका बचपन का नाम मनु था। इनकी माता का नाम भागीरथी और पिता का नाम मोरे पंथ तांबे था। रानी लक्ष्मीबाई ने छोटी उम्र में युद्ध कला सीख कर खुद को एक योद्धा बना लिया था।

16 वर्ष की आयु में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ। विवाह के कुछ समय पश्चात मनु ने एक पुत्र को जन्म दिया ,लेकिन किसी कारण से पुत्र का निधन हो गया। पुत्र की मौत का गम राजा गंगाधर राव सह ना सके और उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए। झांसी की गद्दी राजा के बिना सूनी हो गई थी। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने गोद लिए हुए पुत्र गंगाधर राव को झांसी का उत्तराधिकारी घोषित किया ,लेकिन अंग्रेजों ने इसका विरोध करते हुए झांसी के साथ युद्ध छेड़ दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के साथ पहले झांसी में युद्ध किया, फिर कल्पी में और अंत में ग्वालियर में युद्ध करते समय गंभीर चोटें आने के कारण रानी की 1857 में मृत्यु हो गई।

 

Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi
Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi

 

Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi (3 Minute Speech on Rani Lakshmi Bai)

सभागार में मौजूद सभी सम्मानित अथितियों को मेरा नमस्कार, आदरणीय अध्यापक, अध्यापिका और मेरे प्यारे मित्रों को सुबह की नमस्ते। रानी लक्ष्मीबाई के बारे में सभी लोग जानते ही होंगे। भारत के इतिहास में कुछ ऐसी वीरांगनाएं हुई है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि को आजाद करने के लिए दुश्मनों से लोहा लिया है। रानी लक्ष्मीबाई भी भारत की एक ऐसी बेटी हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए दुश्मनों से लोहा लिया था। रानी लक्ष्मीबाई जन्म 19 नवंबर 1835 को वाराणसी में हुआ था।

इनके पिता मोरे पंत तांबे बिठूर के पेशवा के यहां कर्मचारी थे। इनकी माता भागीरथी एक धार्मिक महिला थी। मात्र 4 साल की आयु में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी माता को खो दिया। रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही काफी बहादुर थी। उनकी रुचि अन्य महिलाओं की तरह खेल खेलने में नहीं बल्कि युद्ध कला सीखने में थी। उन्होंने काफी छोटी उम्र में घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाएं सीख लीं थी। जब रानी लक्ष्मीबाई 16 वर्ष की थी, तब उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ।

विवाह के कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन किसी कारणवश इनके पुत्र की मृत्यु हो गई। पुत्र की मृत्यु का गम झांसी के राजा गंगाधर राव भी ना सह सके, और कुछ समय बाद उनका भी निधन हो गया। झांसी के सिंहासन को सुना देख रानी लक्ष्मीबाई ने गंगाधर राव नामक एक बालक को गोद लिया और उसे झांसी का उत्तराधिकारी घोषित किया। उस समय अंग्रेजों का शासन भारत में चल रहा था। अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई के बेटे गंगाधर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार किया और झांसी पर कब्जा करने के लिए सेना भेज दी।

रानी लक्ष्मीबाई ने अपने राज्य की रक्षा के लिए तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध किया। इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई हार गई, हारने के बाद वे कल्पी की ओर चली गई बदले की भावना लेकर अंग्रेजी सेना का कमांडर ह्यूज रोज उनके पीछे-पीछे कल्पी तक आ गया। कल्पी में युद्ध लड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर पहुंच गई। ग्वालियर में फिर अंग्रेजी सैनिक उनके पीछे आ गए। यह रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्ध का इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई को कई गंभीर चोटें आई हैं, जिस कारण 18 जून 1857 में उनकी मृत्यु हो गई।

Jhansi Rani Lakshmi Bai Speech in Hindi (5 Minute Speech on Rani Lakshmi Bai)

सभागार में मौजूद सभी सम्मानित अथितियों को मेरा नमस्कार, आदरणीय अध्यापक, अध्यापिका और मेरे प्यारे मित्रों को सुबह की नमस्ते। रानी लक्ष्मीबाई का नाम हमारे इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। जब भी हम अपने इतिहास को देखते हैं, तो हमें रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुसज्जित दिखाई देता है। हमारे भारत देश में कई महान वीरांगनाऐं हुई, जिन्होंने अपने हक के लिए अंग्रेजों से युद्ध किया। रानी अवंतीबाई, रानी लक्ष्मीबाई, रानी अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती यह उन महान वीरांगनाओं के नाम है, जिन्होंने सही मायनों में स्त्री शक्ति का परिचय दिया है।

इन वीरांगनाओं ने अपने दुश्मनों के सामने रणचंडी का अवतार लेकर दुश्मनों को स्त्री शक्ति से परिचित कराया है। हमारे देश की एक महान वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 1835 में 19 नवंबर को वाराणसी के पास स्थित एक बाई गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरे पंत तांबे और माता का नाम भागीरथी था।। रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका थ, लेकिन उन्हें प्यार से मनु बुलाया जाता था। रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही बड़ी बहादुर और साहसी थी। उन्होंने छोटी उम्र से ही युद्ध कला सीखना शुरू कर दिया था। वह 14 वर्ष की आयु में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं से परिपूर्ण हो गई। रानी लक्ष्मीबाई जब 16 वर्ष की थी, तब उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ कर दिया गया।

इस तरह मणिकर्णिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई शादी के कुछ समय बाद रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्यवश रानी लक्ष्मी बाई के पुत्र का निधन हो गया। रानी लक्ष्मी बाई के पति गंगाधर राव को अपने पुत्र से काफी लगाव था। पुत्र की मृत्यु का गम वह सहन न कर पाए और कुछ दिनों में उनकी भी मृत्यु हो गई। राजा की मृत्यु के बाद झांसी का सिंहासन सुना हो गया। झांसी के सिंहासन को सुना देख अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने का सोचा तभी रानी लक्ष्मीबाई ने दामोदर राव नामक एक बालक को गोद लेकर उसे झांसी का उत्तराधिकारी घोषित किया। अंग्रेजों द्वारा झांसी की रानी किस निर्णय का विरोध किया गया। 

अंग्रेजों ने गोद लिए हुए बालक गंगाधर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया और झांसी पर कब्जा करने की कोशिश की। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध किया, हालांकि अंग्रेजों की सेना काफी अधिक थी, जिस कारण रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध हार गई और वह झांसी से ग्वालियर चली गई। अंग्रेजी सेना के कमांडर ह्यूजरोज ने रानी लक्ष्मी बाई का पीछा किया और पीछा करते-करते वहां ग्वालियर पहुंच गया। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पीछे दुश्मन को आते देख ग्वालियर में फिर अंग्रेजों के साथ युद्ध किया।

इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने रणचंडी का अवतार लेकर कई दुश्मनों को मार गिराया। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध का वर्णन करते समय कुछ लोग कहते है, कि युद्ध के समय रानी लक्ष्मीबाई के मुंह में घोड़े की लगाम, दोनों हाथों में तलवार और पीठ दामोदर राव बंधे हुए थे। रानी लक्ष्मी बाई का यह रूप देखकर दुश्मन का कांप उठे लेकिन युद्ध के दौरान उन्हें कुछ गंभीर चोट आई जिसके कारण 18 जून 1857 को रानी लक्ष्मीबाई का निधन हो गया। अपनी स्वतंत्रता के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध का निर्णय लिया यदि वह चाहती तो अंग्रेजी हुकूमत के साथ मिलकर शासन कर सकती थी ,लेकिन किसी के अधीन ना होना यह भावना उन्हें बाकी लोगों से अलग बनाती है। रानी लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना ने भारत की भूमि पर जन्म लिया, यह हम सभी के लिए बड़े गर्व की बात है।

Speech on Bhagat Singh in Hindi

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