Mera Priya Kavi Surdas Par Nibandh

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Mera Priya Kavi Surdas Par Nibandh

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Surdas Par Essay in Hindi

सूरदास जी भक्ति रस से ओत-प्रोत एक महान संत और कवि थे। सूरदास जी कृष्ण भक्ति काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं। सूरदास जी के जन्म स्थान को लेकर मतभेद है। इनका जन्म फरीदाबाद के निकट सीही नामक ग्राम में सन 1535 ईस्वी को हुआ था। जबकि कुछ अन्य मतों के अनुसार सूरदास जी का जन्म आगरा तथा मधुरा के मध्य स्थित रुनकता गांव का बताया गया है। परंतु विद्वानों द्वारा बताया जाता है, की सूरदास जी अपने जन्म के समय बहुत बाद में रुनकता गांव गए थे। इनके पिता पंडित रामदास जी तथा माता जमुनादास थी। सूरदास जी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इसलिए बचपन से ही उनमें भक्ति गुण की प्रधानता थी। सूरदास जी जन्मांध थे, जिसके कारण वे अपने घर में उतने प्रिय न थे।  

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जिसके कारण सूरदास जी संसार से उदासीन होकर प्रभु भक्ति में डूब गए, और बहुत कम आयु में ही अपने घर को छोड़ कर चले गए। सूरदास जी एक तालाब के किनारे पिपल के पेड़ के नीचे रहने लगे, लेकिन कुछ ही समय में इनकी भक्ति के प्रभाव के कारण इनके कई शिष्य बन गए। जिससे सूरदास जी की एकाग्रता भंग होने लगी। क्योंकि सूरदास जी एक उच्च कोटि के भक्त थे, और वे ख्याति नहीं चाहते थे, इसलिए वे वहां से मथुरा चले आए। वहां कुछ दिन रुकने के बाद वे आगरा की सड़क पर स्थित गऊघाट पर निवास करने लगे। यहां वे महाप्रभु स्वामी मधु वल्लभाचार्य जी से मिले। सूरदास जी ने वल्लभाचार्य जी को पद गाकर सुनाए। जिसे सुनकर महाप्रभु इतने प्रसन्न हुए और उन्होंने सूरदास जी को दीक्षित किया। इनके ही प्रभाव स्वरूप सूरदास जी कृष्ण लीलाओं को गाने लगे। महाप्रभु स्वामी मधु वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को श्री नाथ जी की सेवा करने और उन्हें पद गायन करने की सेवा दी।

सूरदास जी ने अपने जीवनकाल में कई पद गाएं और रचनाएं की। वे ब्रज भाषा जानते थे, और उनकी रचनाएं भी ब्रज भाषा की ही हैं। इनकी रचनाओं में प्रेम, वात्सल्य, करुणा और श्रृंगार रस की प्रधानता पाई जाती है। बताया जाता है, की इन्होंने करीब सवा लाख पदों की रचना की है, लेकिन उसमें से कुछ ही पद अभी तक प्रकाशित हुए हैं। अपनी रचनाओं में सूरदास जी ने जिस प्रकार से कृष्ण जी की बाल लीलाओं और उनके बचपन का वर्णन किया है, वह अतुलनीय है। इनकी द्वारा रचित कृष्ण लीला का वर्णन इस प्रकार किया गया है, की पढ़ने वाले के आंखों के सामने वह दृश्य जीवंत हो जाता है। कृष्ण की बाल लीलाओं के अलावा सूरदास जी ने राधा कृष्ण के प्रेम को भी अपने पदों में इस प्रकार से लयबद्ध किया है, की भाव वश पढ़ने वाला उसमें डूब जाता है। 

सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं सुरसावली, साहित्य लहरी और सूरसागर है। अपने पदों के माध्यम से सूरदास जी ने कृष्ण जी के चरित्र चित्रण और उनके प्रति अपनी भक्ति और वात्सल्य को दर्शाया है। सूरदास जी कृष्ण जी के बहुत बड़े भक्त थे। वे नदी किनारे बैठ कर भक्ति पदों को लिखा और करते थे, और इनका गायन करते थे। सूरदास जी का सम्पूर्ण जीवन ही कृष्ण भक्ति थी जिसमें सूरदास जी जन्में, जिए और विलीन हो गए। 

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