Savitribai Phule Essay, Essay on Savitribai Phule

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Savitribai Phule Essay 

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Savitribai Phule Essay (800 Words)

प्रस्तावना

भारत में ऐसे कई महान पुरुष-महिलाएं हुई हैं, जिनका सम्पूर्ण जीवन भारतीयों के लिए एक प्रेरणा है। इन्हीं महान महिलाओं में से सावित्री बाई फुले एक है। भारत देश की इस महान महिला ने नारियों की शिक्षा, सशक्तिकरण और कल्याण के लिए कई सारे अद्भुत काम किए। इन्होंने स्वयं के जीवन में लाखों कठिनाइयां और विरोध का सामना कर अन्य महिलाओं को उनके हक के लिए लड़ना सिखाया। ऐसे महान व्यक्तित्व की धनी महिला थी सावित्री देवी जी वे भारत की प्रथम महिला शिक्षक थीं। जिन्होंने कई कठिनाइयों का सामना कर, स्वयं शिक्षित होकर लड़कियों को शिक्षित किया। सावित्री जी समाज सेविका और शिक्षिका के साथ एक कवयित्री भी थी। जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाई।

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Savitribai Phule Essay in Hindi

Savitribai Phule speech in Hindi

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सावित्रीबाई फुले का जन्म (Savitribai Phule Jayanti Hindi)

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के नरगांव नामक गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। यह गांव पुणे से 50 किलोमीटर दूर स्थित है। इनके पिता जी का नाम खंडोजी नवेसे पाटिल और माता का नाम सत्यवती था। सावित्री देवी जी तीन बहने थी, वे अपनी बहनों में सबसे छोटी थीं मध्यमवर्गीय परिवार से होने के कारण और समाज में महिला को शिक्षा का अधिकार ना मिलने के कारण वे शुरुआत में शिक्षा ग्रहण न कर पाईं। लेकिन कुछ समय बाद मात्र 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 12 वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ हुआ, जो उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव लेकर आए।

सावित्री बाई का वैवाहिक जीवन

9 वर्ष की आयु में उनका विवाह ज्योतिबा फूले (Savitribai Phule husband) के साथ हुआ। ज्योतिबा फूले स्वयं एक लेखक, संपादक, समाज सुधारक, महान विचारक और क्रांतिकारी थे सावित्री देवी बचपन से पढ़ी-लिखी नहीं थी। शादी के कुछ समय बाद ज्योतिबा फुले ने उन्हें शिक्षा देने का प्रयास किया और उन्हें पढ़ना लिखना सिखाया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके पति ज्योति राव फुले ने ही पूरी की और आगे की शिक्षा ज्योतिराव फुले के दो दोस्त सखाराम, यशवंत और केशव शिवराम बवलाकर ने पूरी करने में मदद की। सावित्रीबाई फुले को शुरुआत से ही पढ़ने में काफी दिलचस्पी थी सन 1848 में वे भारत देश की पहली महिला शिक्षिका बनी।

Savitribai Phule Essay
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सावित्री बाई का शिक्षा में योगदान (Savitribai Phule contribution in education)

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद और एक शिक्षक बनने के बाद, उन्होंने जिस स्कूल में पढ़ाना शुरू किया वह उनके पति ज्योति राव फूले द्वारा बनवाया गया था। यह स्कूल विशेष रूप से लड़कियों के लिए बनवाया गया था, और यहीं से सावित्रीबाई फुले के जीवन की शुरुआत एक शिक्षिका के रूप में हुई थी। लेकिन उस समय उनका एक शिक्षिका बनना इतना आसान नहीं था, क्योंकि उस समय समाज ने लड़कियों की पढ़ाई लिखाई पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा रखा था। विशेष तौर पर दलित समाज की लड़कियों को तो घर से निकलने तक नहीं दिया जाता था। ऐसे में सावित्रीबाई फुले ने महिला शिक्षा के लिए आवाज उठाई और दलित महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने और शिक्षा का गुण दिलाने के लिए काफी महत्वपूर्ण कार्य किए।

सावित्री देवी का संघर्ष

महिला शिक्षा के लिए आवाज उठाने पर समाज द्वारा सावित्री देवी का काफी विरोध किया गया। लोगों ने उन्हें अपमानित करने के लिए उन्हें गालियां दी, उन पर पत्थर बरसाए, एवं कई बार तो गोबर या गंदगी से उन पर आघात भी किया। इसके लिए सावित्रीबाई देवी सदैव अपने थैले में एक साड़ी रखती थी, जो कि वह गंदे होने पर पहनती थी। समाज द्वारा इतना बहिष्कार करने के बाद भी उन्होंने महिला कल्याण के लिए काम करना नहीं छोड़ा। लेकिन उनके साथ हो रहे इस व्यवहार के कारण उनके सास-ससुर ने उन्हें और उनके पति ज्योतिबा फूले को घर से निकाल दिया। क्योंकि उस वक्त ब्राह्मण ग्रंथ के अनुसार महिलाओं का इस तरह विरोध होना पाप माना जाता था।

सावित्रीबाई फुले के कार्य (Savitribai Phule information in Hindi)

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा का महत्व समझाने के लिए “जाओ और शिक्षा ग्रहण” करो नामक एक कविता भी लिखी। समय के साथ-साथ वह एक उत्साही नारीवादी महिला बन गई। उन्होंने समाज में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए “महिला सेवा मंडल” की स्थापना भी की। इस महिला सेवा मंडल के द्वारा सावित्रीबाई ने समाज से जातिवाद दूर करने के लिए भी कई सारे आंदोलन किए उन्होंने अपने जीवन में शिशु विरोधी कार्य कलाप को रोकने की भी कोशिश की। उन्होंने एक महिला आश्रम खोला जहां पर विधवा महिलाएं सुरक्षित रूप से संतान प्रसव करा सकें, या उन्हें गोद लेने के लिए उस आश्रम पर भी छोड़ सकें। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी बहुत विरोध किया एवं विधवा विवाह का समर्थन किया।

निष्कर्ष

वर्ष 1897 में प्लेग पूरे पुणे में फैल गया। ऐसी स्थिति में भी सावित्री देवी आगे आई, और समाज में रोगियों की सेवा करने लगीं। ऐसी महान महिला और समाज सेविका का निधन 10 मार्च 1897 को प्लेग महामारी के कारण हो गया। आज भारत में उनके जन्मदिवस पर बालिका दिवस मनाया जाता है। सावित्री देवी के सम्मान में भारत सरकार द्वारा उनकी तस्वीर पर डाक टिकट भी निकाला गया। भारत के कई विश्वविद्यालयों का नाम बदलकर सावित्री देवी के नाम पर रखा गया। ऐसी महान महिला का जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है, जिन्होंने लोगों को अपने अधिकार के लिए लड़ना सिखाया, समाज से कुप्रथाओं बंद करने के लिए आवाज उठाई। भारत ऐसे महान महिलाओं को नमन करता है।

Savitribai Phule Essay in Hindi

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